सुनो राम ये गंगा
मात श्री नदियों की रानी है, पावनतम सुरसरी वेशनवी जग कल्याणी है
सुर नर मुनि हैं इसे
नतमस्तक महाराज सगर से सागर तक, इसकी यश पूर्ण कहानी है
सुनो राम ये गंगा
मात श्री नदियों की रानी है, पावनतम सुरसरी वेशनवी जग कल्याणी है
दिग विजय का ध्यान
सगर के मन जब आया, तब अश्वमेध का भरी यध्य कराया
थे महाराजा सगर के
बेटे साठ हजार, अश्व मेघ का अश्व ले चल दिए राजकुमार
सुनकर सगर कीर्ति का
गायन, कम्पित हुआ इंद्र का आसन,
इर्ष्या वश वह अश्व
चुराकर, बांध आया पाताल में जाकर
तक करते जहाँ कपिल
मुनि, नैन मूँद धर ध्यान, अश्व खोजते सगर की वहां पहुंची संतान
(पाताल में, अश्व को
देख, राजकुमारों के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा, वे परस्पर कहने लगे)
जिसके लिए व्याकुल
थे सारे, जिसको ढूंढ- ढूंढ कर हारे, अश्व वो मुनि के निकट बंधा है, ऋषि के काम
निकृष्ट किया है
लगे व्यंग के तीर
चलाने, बोली से अग्नि बरसाने, शांत झील में पड़े जो पत्थर, ध्यान समाधी से उठ गए
मुनिवर
नासमझों ने उनको चोर
कहा, क्रोधित हो मुनि ने श्राप दिया, हुई सबकी जीवन हानी है
उन सगर सुतों की शेष
अब भस्म निशानी है, और मुक्ति हेतु आकाश से गंगा लानी है
तीन पीढियां सगर की
मना मना गई हार, विनय भगीरथ की हुई, गंगा को स्वीकार
(गंगा बोली भगीरथ,
मेरे प्रलयंकारी वेग को सँभालने की छमता, एक मात्र शिव शंकर में है, तुम उन्हे
मनाओ)
भूतेश्वर प्रसिद, भस्मेश्वर प्रसिद,
गोरिवर प्रसिद, ॐ नमः शिवाय
शिव शंकर ने गंगा का
वेग संभाला, उसे अपनी जटाओं के बंधन में डाला
संसार का पहला बांध
जटा शंकर की, हरी की प्यारी वन्दिनी हुई शिव वर की
पाप ताप और श्राप
से, मुक्त करे संसार, इसलिए हिमगिरी पर उसे शिव ने लिया उतार
( शेल सुता गोमुख से
गंगोत्री पर आई और सने सने अपना मार्ग बनाने लगी )
रथ पे भगीरथ आगे
आगे, पीछे चली गंगा की धरा, लाये भगीरथ इसलिए जाये, भागीरथी कहकर इसको पुकारा
जल के इस्पर्श से
श्राप मिटाकर,-2 सरे सगर पुत्रो को उतारा, स्वर्ग से आई सुर सरी ने फिर, स्वयम को
भी सागर में उतारा
पावनतम इस संगम को,
गंगा सागर कहता जग सारा,
ये विष्णु चरण की
धरा है, अमृत भी इससे हारा है, इसे लोग समझते पानी है
सुनो राम ये गंगा
मात श्री नदियों की रानी है, पावनतम सुरसरी वेशनवी जग कल्याणी है
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