दिया निमन्त्रण शबरी
ने प्रभु को अपने घर आने को, चलकर आये राम प्रभु भक्तो का मान बढ़ाने को
बूढी आँखे पथ निहारती आश लगी प्रभु दर्शन में,
बीत ना जाये जीवन
संध्या बिन दर्शन इस उपवन में
सुन आहट पद चापों
की, कपि शबरी देखे इक छवि को,
राम प्रभु संग लखन
खड़े, व्याकुल कुटी भीतर आने को
प्रेम मगन हो शबरी दौड़ी, लिवा लाय कुटी में प्रभु को,
देखन लागी नयन लगा अविचल
अपने प्रिय भगवन को,
बह निकली अशुधार
प्रेम मय, देख प्रभु मुख मंडल को
राम पहुंचे जब सजल
नयन, कहे सबरी प्रभु इसे बहने दो
बड़े प्रेम से शबरी ने निज पास बिठाया प्रभु जन को,
दिए बेर झड़ी के टूटे,
उनको भोग लगाने को,
लखन कहे ना भाए वन
फल, स्वाद रहित हैं ये सब तो,
सबरी सुन भई बड़ी
नीरस क्या भोग लगाऊ अब इनको,
डलिया ले फिर छाटें बेर, कुछ दांत लगाकर चखा उन्हे,
जब लगे मीठे बेर कभी
अर्पित वही प्रभु मुख को किन्हें,
अदभुद दृश देख सुर
सारे, हाथ सुमन फल पान लिए,
भक्त प्रेम से वशीभूत
प्रभु जूठे बेर का भोग लिए,
दिया निमन्त्रण शबरी
ने प्रभु को अपने घर आने को,
चलकर आये राम प्रभु
भक्तो का मान बढ़ाने को
दिया निमन्त्रण शबरी
ने प्रभु को अपने घर आने को,
चलकर आये राम प्रभु
भक्तो का मान बढ़ाने को