Friday, April 15, 2016

दिया निमन्त्रण शबरी ने प्रभु को अपने घर आने को

दिया निमन्त्रण शबरी ने प्रभु को अपने घर आने को, चलकर आये राम प्रभु भक्तो का मान बढ़ाने को
बूढी आँखे पथ निहारती आश लगी प्रभु दर्शन में,
बीत ना जाये जीवन संध्या बिन दर्शन इस उपवन में
सुन आहट पद चापों की, कपि शबरी देखे इक छवि को,
राम प्रभु संग लखन खड़े, व्याकुल कुटी भीतर आने को
प्रेम मगन हो शबरी दौड़ी, लिवा लाय कुटी में प्रभु को,
देखन लागी नयन लगा अविचल अपने प्रिय भगवन को,
बह निकली अशुधार प्रेम मय, देख प्रभु मुख मंडल को
राम पहुंचे जब सजल नयन, कहे सबरी प्रभु इसे बहने दो
बड़े प्रेम से शबरी ने निज पास बिठाया प्रभु जन को,
दिए बेर झड़ी के टूटे, उनको भोग लगाने को,
लखन कहे ना भाए वन फल, स्वाद रहित हैं ये सब तो,
सबरी सुन भई बड़ी नीरस क्या भोग लगाऊ अब इनको,
डलिया ले फिर छाटें बेर, कुछ दांत लगाकर चखा उन्हे,
जब लगे मीठे बेर कभी अर्पित वही प्रभु मुख को किन्हें,
अदभुद दृश देख सुर सारे, हाथ सुमन फल पान लिए,
भक्त प्रेम से वशीभूत प्रभु जूठे बेर का भोग लिए,
दिया निमन्त्रण शबरी ने प्रभु को अपने घर आने को,
चलकर आये राम प्रभु भक्तो का मान बढ़ाने को
दिया निमन्त्रण शबरी ने प्रभु को अपने घर आने को,

चलकर आये राम प्रभु भक्तो का मान बढ़ाने को 

राम भक्त ले चला रे राम की निशानी

प्रभु कर कृपा बावरी दिनी
सादर भरत शीश धर लीनी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी
शीश पर खडाऊं अंखियों में पानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी निशानी
 
शीश खडाऊं ले चला ऐसे
राम सिया जी संग हों जैसे
अब इनकी छाँव में रहेगी राजधानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी निशानी

पल छीन लागे सदियों जैसे
चोदह बरस कटेंगे कैसे
जाने समय क्या खेल रचेगा
कौन मरेगा कोने बचेगा
कब रे मिलन के फूल खिलेंगे
नदिया के दो कूल मिलेंगे
जी करता है यहीं बस जाएँ
हिलमिल चोदह बरस बिताये
राम बिन कठिन है इक घडी बितानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी निशानी
 
तन मन बचन उमगी अनुरागा
धीर धुरन्दर धीरज त्यागा
भावना में बह चले धीर वीर ज्ञानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी
शीश पर खडाऊं अंखियों में पानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी


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Wednesday, April 13, 2016

राज गद्दी विराजे रजा राम जी संग सोहे सिया महारानी-2 (

राज गद्दी विराजे रजा राम जी संग सोहे सिया महारानी-2
अनुपम शास्वत अविनव प्राकृत-2 जोड़ी सरस सुहानी सुहानी
राज गद्दी विराजे रजा राम जी संग सोहे सिया महारानी-2

सब धरम मार्ग पर चलते, सुभ संस्कारों में ढलते, जन जलते नहीं परस्पर
सदभाव के दीपक जलते, सपने में भी कोई किसी को
सपने में भी कोई किसी को नहीं पहुंचता हानि रे हानि
राज गद्दी विराजे रजा राम जी संग सोहे सिया महारानी-2

गज सिंघ हिरन गउओ के संग, जल एक घाट पर पीते हैं,
स्वभाविक बैर भुलाकर सब, रामाश्रित होकर जीते हैं
एक प्रभु से अनुप्राणित हैं, एक प्रभु से अनुप्राणित हैं, जग के सरे प्राणी रे प्राणी
राज गद्दी विराजे रजा राम जी संग सोहे सिया महारानी-2

पतियों पर नारियां समर्पित, पुरुष हैं इक पत्नी व्रत धारी,
त्रेता सतयुग का रूपांतर, सब परमार्थी वेदआचारी
धन धान्य से पूरित वसुधा, धन जब मांगो जल देते,
छे ऋतू के फल दे तरुवर, प्रभु बिन मांगे फल देते
बस अभाव का ही अभाव है, बस अभाव का ही अभाव है,
शिव कहें सुनो शिवानी शिवानी  
राज गद्दी विराजे रजा राम जी संग सोहे सिया महारानी-2

कोई दीन हो तो कहे दीन बन्धु, हो अनाथ तो दीनानाथ कहें,
करुणा सागर कहें भगवन को, यदि किसी नयन से अश्रु बहे,
पूर्व पदवियों से नही प्रभु की, पूर्व पदवियों से नही प्रभु की,
महिमा जाये बखानी बखानी
राज गद्दी विराजे रजा राम जी संग सोहे सिया महारानी-2
(अनुपम शास्वत अविनव प्राकृत-2) जोड़ी सरस सुहानी सुहानी
राज गद्दी विराजे रजा राम जी संग सोहे सिया महारानी-2

शाम काम आये वहां जहाँ अज्ञानी होए, दाम जिसे दें जब फिर धनरा ना कोई,
दंड जो केवल रह गया, सन्यासी के हाथ, राजा राम की जय 


मेरे लक्ष्मण मेरे प्राण प्यारे खोल अंखिया की भैया पुकारे

मेरे लक्ष्मण मेरे प्राण प्यारे खोल अंखिया की भैया पुकारे-2

लाडले ये अयोध्या नहीं है, (कोई लंका में अपना नहीं है-2)
तू समर बीच क्यों सो गया रे, खोल अंखिया की भैया पुकारे

तुझको बनवास में संग लाया, (रण में झोंका असुर से लड़ाया-2)
दोष अक्षम्य हैं मेरे सरे, खोल अंखिया की भैया पुकारे

है पवनसुत की प्रतिपल प्रतीक्षा, (ये मेरे धेर्य की है परीक्षा-2)
सूर्य आकर डुबो दे ना तारे, खोल अंखिया की भैया पुकारे 
मेरे लक्ष्मण मेरे प्राण प्यारे खोल अंखिया की भैया पुकारे


गढ़ गयो खम्ब हमारो

गढ़ गयो खम्ब हमारो
अरे गढ़ गयो खम्ब हमारो, हिम्मत होई तो याहे  उखारो, (पग नहीं हिले तो हमसे हारो बोलो राम जी की जय-2)
एक एक जोधा आये
एक एक जोधा आये, बल एडी चोटी को लगावे, (पग नहीं हिले आप हिल जावे बोलो राम जी की जय-2)
तंभ सुर वीरन को माटी में मिलाये दियो, रावन के सूत मेघनाद को हराए दियो
राम को प्रताप रावन को दिखाए दियो, रावन आते देख पग को हटाई दियो
बोला रे अभिमानी, बोला रे अभिमानी, प्रभु के चरन पकड वरदानी,
देकर उन्हे सिया महारानी बोलो राम जी की जय, देकर उन्हे सिया महारानी बोलो राम जी की जय
श्री राम जी की जय, रजा राम जी की जय, हो सीता राम जी की जय

मनोयोग से सुनो सुनो हे सीता जनक सुजाता

मनोयोग से सुनो सुनो हे सीता जनक सुजाता, ध्यान लगा कर सुनो सुनो हे सीता जनक सुजाता
हरी अनंत हरी कथा अनंता में सक्षिप्त सुनाता
कथा यह जग कल्याणी है कथा यह जग कल्याणी है, नायक रजा श्री राम नायिका सीता रानी है
प्राण प्रिय दोनों मेरे हैं प्राण प्रिय दोनों मेरे हैं, (दुःख संकट हरने वालों को अभी संकट घेरे हैं-2)
श्री राम अयोध्या में प्रगटे, मिथला में प्रगटी देवी सिया, सीता की भगनिया तीन राम ने, तीन भ्रात संग जनम लिया
आये प्रभु सिया स्वयबर में, और शिव के धनुष को तोड़ दिया, दशरथ नंदन ने जनक नंदिनी का शुभ पानीब ग्रहण किया
लक्ष्मी नारायण का जोड़ा सीता राम कहाता-2  हरी अनंत हरी कथा अनंता में सक्षिप्त सुनाता
हर्ष से भरी राजधानी हर्ष से भरी राजधानी, की तीन तीन सासुओं चार वधुओ की अगुवानी
रंग भरे दिन हैं सुखदाई प्रेम भरे दिन हैं सुखदाई, (उत्सव का वातावरण मांगलिक बाजे शहनाई-2)
सुख के रंग फीके पड़े विघ्ना हो गई वाम, सुख के दिन फीके पड़े विघ्ना हो गई वाम  
बहुत दिनों आनंद से रह ना सके सिया राम,
राम जो था सबका प्यारा, कैकई को सबसे प्यारा, (बनबास दियाला उसे पिता श्री दशरथ के द्वारा-2)
पिता के वचन निभाने को, पिता के वचन निभाने को, चले राम लखन सिया संग विपिन में कष्ट उठाने को  
भगवान भगवती चले विपिन में कष्ट उठाने को  
प्रभु चित्रकूट में वास किया, तदनंतर पहुंचे पंचवटी, यहाँ सूर्पनखा मधुमाती की लक्ष्मण के हाथों नाक कटी
छल से सीता का करके हरण, लंका लाया रावण कपटी, देखोगी शीघ्र तुम धरती से, रावण नामक आपदा हटी
देत्य दमन को राघव का अवतार हुआ है माता, खल खंडन को राघव का अवतार हुआ है माता
हरी अनंत हरी कथा अनंता में सक्षिप्त सुनाता
राम का दूत मुझे जानो, नाथ का दास मुझे जानो, मुद्रिका राम जी ने भेजी लो मैया पहचानो
मुद्रिका भेद ये कहती है, मुद्रिका भेद ये कहती है, (रघुवर के ह्रदय में, सिया प्रेम की गंगा बहती है-2)
आया हूँ में छोड़कर, सेना सगर पीर, आया हूँ में छोड़कर, सेना सगर पीर, शीघ्र यहाँ दल-बल सहित आएँगी रघुवीर  
बोझ धरती का हटायेगे त्रास देवो का मिटायेगे, कर रावण का वध तुम्हे, संग प्रभु लेकर जायेंगे
रावण को देकर मुक्ति, मुक्त प्रभु तुम्हे कराएँगे
ह्रदय में धीर धरो मैया, ह्रदय में धीर धरो मैया, प्रभु और प्रभु जी के सेवक पर विश्वास करो मैया  

श्री राम और हनुमान पे तुम विश्वास करो मैया 

माया मृग बनके मारीच बन में आया

माया मृग बनके मारीच बन में आया, 
स्वर्ण मय मनोहर वास्तव से सुंदर, 
छल बल से सीता का मन भरमाया
माया मृग बनके मारीच बन में आया

विनती सुनो रघुवीर कृपाला, लादो मृग मन हरने वाला
इसको अयोध्या ले जाउंगी, सबका वहां मन बहलाउंगी  
मन के आग्रह प्राण प्रिया का, माया मृग के पीछे, मायापति धाया

माया मृग बनके मारीच बन में आया

जीवन के इस महादर्शन से मुख नहीं मोड़ा जाये

जीवन के इस महादर्शन से मुख नहीं मोड़ा जाये हो, मृत्यु तो हे ध्रुव सत्य में हर मृतक यही समझाए हो
जीवन के इस महादर्शन से मुख नहीं मोड़ा जाये हो
कितने दिन तक दशरथ का तन तेल में रखा डुबाये हो, चार पुत्र पर एक निकट नहीं सदगति कोन कराये हो
मृत्यु तो हे ध्रुव सत्य में हर मृतक यही समझाए हो, जीवन के इस महादर्शन से मुख नहीं मोड़ा जाये हो
चार दिशा में विजय पताका जो राजन फेहराये हो,  काल से हारके यू सोये फिर जागे नहीं जगाये हो
मृत्यु तो हे ध्रुव सत्य में हर मृतक यही समझाए हो, जीवन के इस महादर्शन से मुख नहीं मोड़ा जाये हो
कुटुंब कबीला मृतक से ऐसे, अपना नेह निभाए हो, पहले जलाकर भस्म करे फिर, जल में भस्म बहाए हो 
मृत्यु तो हे ध्रुव सत्य में हर मृतक यही समझाए हो, जीवन के इस महादर्शन से मुख नहीं मोड़ा जाये हो
जिव तो जग में आये जाये विधि का लिखा निभाए हो, आत्मा के संग धर्म चले और कर्म ही अमर बनाये हो

मृत्यु तो हे ध्रुव सत्य में हर मृतक यही समझाए हो, जीवन के इस महादर्शन से मुख नहीं मोड़ा जाये हो

तापस वेश बनाकर वैन को चले हैं राम रघुराई

सुख के दिन कितने शीघ्र ढले, हर आस मिटी सब स्वप्न जले,
चले मानव हो या इश्वर हो, पर कर्म की गति टाले ना टले
तापस वेश बनाकर वैन को चले हैं राम रघुराई, पितु का प्रण पूरण करने में
माँ के वचन पालन करने में, तनिक क ना देर लगाई
तापस वेश बनाकर वैन को चले हैं राम रघुराई
राम सिया की सेवा रक्षा करने को पुत्र सुमित्रा ने सोंपा, लखन का बचपन संग चला और सीता संग चली वन छाया
बोली सुमित्रा लखन से अब तेरे-2 राम पिता सिया मई
तापस वेश बनाकर वैन को चले हैं राम रघुराई
रघु कोशल्या के द्वार खड़े, वन गमन की आघ्या मांग रहे, निज पीर नयन का नीर छुपा, माँ देके विदा रघुवर से कहे
बन में सिया को जतन से रखना, जनक दुलारी को जतन से रखना, राम लखन दो भाई
तापस वेश बनाकर वैन को चले हैं राम रघुराई
पितु दशरथ के प्रण चले हैं, माता के अभिमान चले हैं, चले है सुख आनंद अवध के जन जन के भगवान चले हैं
रोके रुके नहीं राम तो संग में-2 सारी अयोध्या आई
तापस वेश बनाकर वैन को चले हैं राम रघुराई, पितु का प्रण पूरण करने में
माँ के वचन पालन करने में, तनिक क ना देर लगाई
तापस वेश बनाकर वैन को चले हैं राम रघुराई, संग में लक्ष्मण भाई, चली जानकी माई


सिया राम पिया के साथ

सिया राम पिया के साथ फिरन लागे हरी हरी फिरन लागे भांवरीया,
मन हर्षित पुलकित गात फिरन लागे हरी हरी फिरन लागे भांवरीया सिया राम पिया के साथ
श्री जू सागर विष्णु को सोंपे, हिमगिरी गौरी शिव संग ब्याही
जनक ने दियो राम को सीता, विनयशील, गुणवती पुनीता
लोक रीती से मंगल परिणय, कर सिया रघुनाथ
फिरन लागे हरी हरी फिरन लागे भांवरीया सिया राम पिया के साथ
फिरन लागे हरी हरी फिरन लागे भांवरीया सिया राम पिया के साथ
यधपि दोनों मित पुराने, तदपि बने पुनि पुनि अनजाने
पुनि माल्यार्पण पुनि गठबंधन, पुनि भावर फिर लक्ष्मी नारायण  
माँनछुत वरदानी वर द्वारा, सिंदूरी हु अमात, गोरी को मिले हरे हरे गोरी को मिले सांवरिय

छवि देखत नैन जुडात, गोरी को मिले हरे हरे गोरी को मिले सांवरिय, छवि देखत नैन जुडात

सुनो राम ये गंगा मात श्री नदियों की रानी है

सुनो राम ये गंगा मात श्री नदियों की रानी है, पावनतम सुरसरी वेशनवी जग कल्याणी है
सुर नर मुनि हैं इसे नतमस्तक महाराज सगर से सागर तक, इसकी यश पूर्ण कहानी है
सुनो राम ये गंगा मात श्री नदियों की रानी है, पावनतम सुरसरी वेशनवी जग कल्याणी है
दिग विजय का ध्यान सगर के मन जब आया, तब अश्वमेध का भरी यध्य कराया
थे महाराजा सगर के बेटे साठ हजार, अश्व मेघ का अश्व ले चल दिए राजकुमार
सुनकर सगर कीर्ति का गायन, कम्पित हुआ इंद्र का आसन,
इर्ष्या वश वह अश्व चुराकर, बांध आया पाताल में जाकर
तक करते जहाँ कपिल मुनि, नैन मूँद धर ध्यान, अश्व खोजते सगर की वहां पहुंची संतान
(पाताल में, अश्व को देख, राजकुमारों के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा, वे परस्पर कहने लगे)
जिसके लिए व्याकुल थे सारे, जिसको ढूंढ- ढूंढ कर हारे, अश्व वो मुनि के निकट बंधा है, ऋषि के काम निकृष्ट किया है
लगे व्यंग के तीर चलाने, बोली से अग्नि बरसाने, शांत झील में पड़े जो पत्थर, ध्यान समाधी से उठ गए मुनिवर
नासमझों ने उनको चोर कहा, क्रोधित हो मुनि ने श्राप दिया, हुई सबकी जीवन हानी है
उन सगर सुतों की शेष अब भस्म निशानी है, और मुक्ति हेतु आकाश से गंगा लानी है
तीन पीढियां सगर की मना मना गई हार, विनय भगीरथ की हुई, गंगा को स्वीकार
(गंगा बोली भगीरथ, मेरे प्रलयंकारी वेग को सँभालने की छमता, एक मात्र शिव शंकर में है, तुम उन्हे मनाओ)
 भूतेश्वर प्रसिद, भस्मेश्वर प्रसिद, गोरिवर प्रसिद, ॐ नमः शिवाय
शिव शंकर ने गंगा का वेग संभाला, उसे अपनी जटाओं के बंधन में डाला
संसार का पहला बांध जटा शंकर की, हरी की प्यारी वन्दिनी हुई शिव वर की
पाप ताप और श्राप से, मुक्त करे संसार, इसलिए हिमगिरी पर उसे शिव ने लिया उतार
( शेल सुता गोमुख से गंगोत्री पर आई और सने सने अपना मार्ग बनाने लगी )
रथ पे भगीरथ आगे आगे, पीछे चली गंगा की धरा, लाये भगीरथ इसलिए जाये, भागीरथी कहकर इसको पुकारा
जल के इस्पर्श से श्राप मिटाकर,-2 सरे सगर पुत्रो को उतारा, स्वर्ग से आई सुर सरी ने फिर, स्वयम को भी सागर में उतारा
पावनतम इस संगम को, गंगा सागर कहता जग सारा,
ये विष्णु चरण की धरा है, अमृत भी इससे हारा है, इसे लोग समझते पानी है

सुनो राम ये गंगा मात श्री नदियों की रानी है, पावनतम सुरसरी वेशनवी जग कल्याणी है