कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहाँ जाँऊ
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहाँ जाँऊ
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहाँ जाँऊ
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
पर राम सा पुत्र मिले ना जो आज्ञा ले वन जाये
दशरथ कौशल्या जैसे मातपिता अब भी मिल जाये
पर राम सा पुत्र मिले ना जो आज्ञा ले वन जाये
भरत लखन से भाई को अब ढूंढ कहाँ से में लाऊँ
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहाँ जाँऊ
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
रामायण की बातें लगती जैसे हो सपना कोई
जिसे समझते हो तुम अपना जड़े खोदता आज वोही
रामायण की बातें लगती जैसे हो सपना कोई
तब थी दासी एक मंथरा आज वोही घर घर पाऊँ
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहाँ जाँऊ
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
अपने घर की नीव खोदते देखे मेने घरवाले
लूट रहे बगिया को देखो खुद ही उसके रखवाले
अपने घर की नीव खोदते देखे मेने घरवाले
तब था घर का एक ही भेदी आज वोही घर घर पाऊं
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहाँ जाँऊ
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
सेवा कर्म तो दूर रहा वो वक्त पड़े तो वार करे
आज दास का धर्म बना है मालिक से तकरार करे
सेवा कर्म तो दूर रहा वो वक्त पड़े तो वार करे
हनुमान सा दास दूसरा आज कहाँ से में पाऊं
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहाँ जाँऊ
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहाँ जाँऊ
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहाँ जाँऊ
अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ
इतने राम कहाँ से लाऊँ
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