Tuesday, October 11, 2016

राहों में नजर रखना होठों पे दुआ रखना

राहों में नज़र रखना, होठों पे दुआ रखना  
आ जाये प्रभु शायद, दरवाज़ा खुला रखना 

भूलूँ ना कभी पल भर मैं नाम तेरा भगवन 
चरणों में सदा अपने मेरे मन को लगा रखना 
राहों में नज़र रखना...

क्यों भव में भटकने की देते हो सजा सबको 
दुस्वार है पल भर भी तेरे रहम बिना रहना 
राहों में नज़र रखना...

छण भंगुर मानव तन बड़े भाग्य से पाया है 
कहीं पतित ना हो जाये प्रभु चरण शरण गहना 
राहों में नज़र रखना...

सुन दुर्लभ मानव तन बड़े भाग्य से पाया है 
कहीं व्यर्थ ना हो जाए सत्कर्म किये रहना   
राहों में नज़र रखना...

राम को देख कर के जनक नंदिनी

राम को देख कर के जनक नंदिनी,
बाग़ में वो खड़ी की खड़ी रह गयी ।
राम देखे सिया को सिया राम को,
चारो अँखिआ लड़ी की लड़ी रह गयी ॥

यज्ञ रक्षा में जा कर के मुनिवर के संग,
ले धनुष दानवो को लगे काटने ।
एक ही बाण में ताड़का राक्षसी,
गिर जमी पर पड़ी की पड़ी रह गयी ॥

राम को मन के मंदिर में अस्थान दे
कर लगी सोचने मन में यह जानकी ।
तोड़ पाएंगे कैसे यह धनुष कुंवर,
मन में चिंता बड़ी की बड़ी रह गयी ॥

विश्व के सारे राजा जनकपुर में जब,
शिव धनुष तोड़ पाने में असफल हुए ।
तब श्री राम ने तोडा को दंड को,
सब की आँखे बड़ी की बड़ी रह गयी ॥

तीन दिन तक तपस्या की रघुवीर ने,
सिंधु जाने का रास्ता न उनको दिया ।
ले धनुष राम जी ने की जब गर्जना,
उसकी लहरे रुकी की रह गयी ॥

राम तुम बड़े कृपालु हो शाम तुम बड़े दयालु हो

राम तुम बड़े कृपालु हो, शाम तुम बड़े दयालु हो ।
नाथ तुम बड़े दयालु हो,प्रभु जी तुम बड़े कृपालु हो ॥

और न कोई हमारा है, मुझे इक तेरा सहारा है ।
कि नईया डोल रही मेरी,प्रभु जी तुम करो न अब देरी ॥

तेरा यश गाया  वेदों ने, पार नहीं पाया वेदों ने ।
नेती नेती गाया वेदों ने, सदा ही धिआया वेदों ने ॥

भले हैं बुरे हैं तेरे हैं, तेरी माया के घेरे हैं ।
चरण के हम सब चेरे हैं, प्रभु जी हम बालक तेरे हैं ॥

तुम्हारा नाम मिले भगवन, सुबह और शाम मिले भगवन ।
भक्ति का दान मिले भगवन, कि आठों याम मिले भगवन ॥

सहारा भक्तों के हो आप, मिटाते हो सब के संताप ।
करें जो भक्ति भाव से जाप, मिटे सब जन्म जन्म के पाप ॥

मुझमे राम तुझमे राम सबमे राम समाया

गली गली ढूंढा, वन वन ढूंढा,
   
कहा कहा ढूंढा राम, 
   
सब जग ढूंढा मैंने, मन नहीं ढूंढा,
   
जहा मिला मेरा राम ।

मुझमे राम तुझमे राम सबमे राम समाया,
सबसे करलो प्रेम यहां कोई नहीं पराया,
यहां कोई नहीं पराया।

एक बाग़ के फूल हैं सारे,एक हार के मोती,
जितने हैं संसार में प्राणी,सबमे एक ही ज्योति
भूल गए उस परम-पिता को जिसने हमे बनाया,
सबसे करलो प्रेम यहां कोई नहीं पराया,
यहां कोई नहीं पराया।

एक पिता के बच्चे है हम,एक हमारी माता,
दाना पानी देने वाला सबका एक है दाता,
मेरा है यह मैंने कमाया,मूरख क्यों भरमाया,
सबसे करलो प्रेम यहाँ कोई नही पराया,
यहां कोई नही पराया।

कण कण में प्रतिबिम्ब है उसका,ब्रह्म तुम्हारी माया
क्यों कर किसी से बैर करोगे,कौन है यहाँ पराया,
सेवा धर्मं ही श्रेष्ठ धर्म है,गुरुओं ने बतलाया,
सबसे करलो प्रेम यहां कोई नही पराया,
यहाँ कोई नही पराया।

कैकई संवाद

"यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को |"
चौंके सब सुनकर अटल कैकेयी स्वर को |
सबने रानी की ओर अचानक देखा,
बैधव्य-तुषारावृता   यथा   विधु-लेखा |
बैठी थी अचल तथापि असंख्यतरंगा ,
वह सिंही अब थी हहा ! गौमुखी गंगा ---
"
हाँ, जनकर भी मैंने न भारत को जाना ,
सब सुन लें,तुमने स्वयं अभी यह माना |
यह सच है तो फिर लौट चलो घर भईया ,
अपराधिन मैं हूँ तात , तुम्हारी मईया |
दुर्बलता का ही चिन्ह विशेष शपथ है ,
पर ,अबलाजन के लिए कौन सा पथ है ?
यदि मैं उकसाई गयी भरत से होऊं ,
तो पति समान स्वयं पुत्र भी खोऊँ |
ठहरो , मत रोको मुझे,कहूं सो सुन लो ,
पाओ यदि उसमे सार उसे सब चुन लो,
करके पहाड़ सा पाप मौन रह जाऊं ?
राई भर भी अनुताप न करने पाऊँ ?
थी सनक्षत्र शशि-निशा ओस टपकाती ,
रोती थी नीरव सभा ह्रदय थपकाती |
उल्का सी रानी दिशा दीप्त करती थी ,
सबमें भय,विस्मय और खेद भरती थी |
'
क्या कर सकती थी मरी मंथरा दासी ,
मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी |
जल पंजर-गत अरे अधीर , अभागे ,
वे ज्वलित भाव थे स्वयं तुझी में जागे |
पर था केवल क्या ज्वलित भाव ही मन में ?
क्या शेष बचा था कुछ न और इस जन में ?
कुछ मूल्य नहीं वात्सल्य मात्र , क्या तेरा ?
पर आज अन्य सा हुआ वत्स भी मेरा |
थूके , मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके ,
जो कोई जो कह सके , कहे, क्यों चुके ?
छीने न मातृपद किन्तु भरत का मुझसे ,
हे राम , दुहाई करूँ और क्या तुझसे ?
कहते आते थे यही अभी नरदेही ,
'
माता न कुमाता , पुत्र कुपुत्र भले ही |'
अब कहे सभी यह हाय ! विरुद्ध विधाता ,---
'
है पुत्र पुत्र ही , रहे कुमाता माता |'
बस मैंने इसका बाह्य-मात्र ही देखा ,
दृढ ह्रदय न देखा , मृदुल गात्र ही देखा |
परमार्थ न देखा , पूर्ण स्वार्थ ही साधा ,
इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा !
युग युग तक चलती रहे कठोर कहानी ---
'
रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी |'
निज जन्म जन्म में सुने जीव यह मेरा ---
'
धिक्कार ! उसे था महा स्वार्थ ने घेरा |'---''
"
सौ बार धन्य वह एक लाल की माई |''
जिस जननी ने है जना भरत सा भाई |"
पागल-सी प्रभु के साथ सभा चिल्लाई ---
"
सौ बार धन्य वह एक लाल की माई |''

गायिका - माधुरी मिश्रा
रचयिता - मैथिली शरण गुप्त