जय राम रमा रमनं समनं
भव ताप भयाकुल पाहि जनम
अवधेस सुरेस रमेस बिभो
सरनागत मांगत पाहि प्रभो
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
दससीस बिनासन बीस भुजा
कृत दूरी महा महि भूरी रुजा
रजनीचर बृंद पतंग रहे
सर पावक तेज प्रचंड दहे
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
संगीत...................१२३
महि मंडल मंडन चारुतरं
धृत सायक चाप निषंग बरं
मद मोह महा ममता रजनी
तम पुंज दिवाकर तेज अनी
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
मनजात किरात निपात किए
मृग लोग कुभोग सरेन हिए
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे
बिषया बन पावँर भूली परे
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
बहु रोग बियोगन्हि लोग हए
भवदंघ्री निरादर के फल ए
भव सिन्धु अगाध परे नर ते
पद पंकज प्रेम न जे करते
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
संगीत...................१२३
अति दीन मलीन दुखी नितहीं
जिन्ह के पद पंकज प्रीती नहीं
अवलंब भवंत कथा जिन्ह के
प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह के
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
नहीं राग न लोभ न मान मदा
तिन्ह के सम वैभव वा विपदा
एहि ते तव सेवक होत मुदा
मुनि त्यागत जोग भरोस सदा
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
करि प्रेम निरंतर नेम लिए
पद पंकज सेवत सुद्ध हिए
सम मानि निरादर आदरही
सब संत सुखी बिचरंति मही
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
मुनि मानस पंकज भृंग भजे
रघुबीर महा रंधीर अजे
तव नाम जपामि नमामि हरी
भव रोग महागद मान अरी
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
संगीत...................१२३
गुण सील कृपा परमायतनं
प्रणमामि निरंतर श्रीरमनं
रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं
महिपाल बिलोकय दीन जनं
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
राजा राम राजा राम
सीता राम सीता राम
सीता राम सीता राम
बार बार बर मांगउ
हरषी देहु श्रीरंग
पद सरोज अनपायनी
भगति सदा सतसंग
बरनि उमापति राम गुन
हरषि गए कैलास
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए
सब बिधि सुखप्रद वास
सियावर राम चन्द्र की जय
SONG LNK:
https://www.youtube.com/watch?v=_xDYHxCmO3k
KARAOKE LINK:
यह स्तुति भगवान शिव शंकर अपने प्रभु राम के अयोध्या वापस आपने के उपलक्ष्य में गाई गई है। जिसके अंतर्गत
सभी ऋषिगण, गुरु, कुटुम्बी एवं अयोध्या वासी कैसे अधीर हो कर अपने प्रभु रूप राजा राम की
प्रतीक्षा कर रहे हैं। तथा श्री राम के आगमन पर कैसे सभी आनन्दित हैं, श्रीराम अपने महल को चलते है, आकाश से फूलों की वृष्टि होरही है। सब का वर्णन है इस स्तुति में..
1.जय राम रमारमनं शमनं। भव ताप भयाकुल पाहि जनं
अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत
मागत पाहि प्रभो
हे राम! हे रमारमण (रमाकांत)! हे
जन्म-मरण के संताप का नाश करने वाले! आपकी जय हो, आवागमन के भय से व्याकुल इस सेवक
की रक्षा कीजिए। हे अवधपति! हे देवताओं के स्वामी! हे रमापति! हे विभो! मैं
शरणांगत आपसे यही मांगता हूं कि हे प्रभो! मेरी रक्षा कीजिए
2.दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि
महा महि भूरि रुजा
रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक
तेज प्रचंड दहे
हे दस सिर और बीस भुजाओं वाले
रावण का विनाश करके पृथ्वी के सब महा कष्टों को दूर करने वाले श्री रामजी! राक्षस
समूह रूपी जो पतंगे थे, वे सब आपके बाण रूपी अग्नि के
प्रचण्ड तेज से भस्म हो गए
3.महि मंडल मंडन चारुतरं। धृत सायक
चाप निषंग वरं
मद मोह महा ममता रजनी। तम पुंज
दिवाकर तेज अनी
आप पृथ्वी मंडल के अत्यंत सुंदर
आभूषण हैं, आप श्रेष्ठ बाण, धनुष और तरकश धारण किए हुए हैं।
महा मद, मोह और ममता रूपी रात्रि के
अंधकार समूह के नाश करने के लिए आप सूर्य के तेजोमय किरण समूह हैं
4.मनजात किरात निपात किये। मृग लोग
कुभोग सरेण हिये
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे। विषया
बन पावंर भूलि परे
कामदेव रूपी भील ने मनुष्य रूपी
हिरनों के हृदय में कुभोग रूपी बाण मारकर उन्हें गिरा दिया है। हे नाथ! हे हरे!
(पाप-ताप का हरण करने वाले) उसे मारकर विषय रूपी वन में भूल पड़े हुए इन पामर अनाथ
जीवों की रक्षा कीजिए
5.बहु रोग वियोगन्हि लोग हये।
भवदंघ्रि निरादर के फल ए
भव सिंधु अगाध परे नर ते। पद
पंकज प्रेम न जे करते
लोग बहुत से रोगों और वियोगों
(दुःखों) से मारे हुए हैं। ये सब आपके चरणों के निरादर के फल हैं। जो मनुष्य आपके
चरणकमलों
में प्रेम नहीं करते, वे अथाह भवसागर में पड़े हैं
6.अति दीन मलीन दुःखी नितही। जिन्ह
के पद पंकज प्रीत नही
अवलंब भवंत कथा जिन्ह के। प्रिय
संत अनंत सदा तिन्हके
दुःखी रहते हैं और जिन्हें आपकी
लीला कथा का आधार है, उनको संत सदा प्रिय लगने लगते
हैं
7.नहिं राग न लोभ न मान मदा। तिन्ह
के सम वैभव वा बिपदा
एहि ते तव सेवक होत मुदा। मुनि
त्यागत जोग भरोस सदा
जिन्हें आपके चरणकमलों में
प्रीति नहीं है वे नित्य ही अत्यंत दीन, मलिन (उदास) और जिनमें न राग
(आसक्ति) है, न लोभ, न मान है, न मद। उसके लिए संपत्ति, सुख और विपत्ति (दुःख) समान हैं
इसी से मुनि लोग योग (साधन) का भरोसा सदा के लिए
त्याग देते हैं और प्रसन्नता के
साथ आपके सेवक बन जाते हैं
8.करि प्रेम निरंतर नेम लिएं। पद पंकज सेवत सुद्ध
हिएं
सम मानि निरादर आदरही। सब संत
सुखी बिचरंत मही
वे प्रेमपूर्वक नियम लेकर निरंतर
शुद्ध हृदय से आपके चरणकमलों की सेवा करते रहते हैं और निरादर और आदर को समान
मानकर वे सब संत सुखी होकर
पृथ्वी पर विचरते हैं
9.मुनि मानस पंकज भृंग भजे। रघुवीर
महा रणधीर अजे
तव नाम जपामि नमामि हरी। भव रोग
महागद मान अरी
हे मुनियों के मन रूपी कमल के
भ्रमर! हे महा रणधीर एवं अजेय श्री रघुवीर! मैं आपको भजता हूं (आपकी शरण ग्रहण
करता हूं)। हे हरि! आपका नाम जपता हूं और आपको नमस्कार करता हूं। आप जन्म-मरण रूपी
रोग की महान औषधि और अभिमान के शत्रु हैं
10.गुन सील कृपा परमायतनं। प्रनमामि
निरंतर श्रीरमनं
रघुनंद निकंदय द्वंद्व घनं।
महिपाल बिलोकय दीन जनं
आप गुण, शील और कृपा के परम स्थान हैं।
आप लक्ष्मीपति हैं, मैं आपको निरंतर प्रणाम करता
हूं। हे रघुनन्दन! (आप जन्म-मरण, सुख-दुःख, राग-द्वेषादि रूपी) द्वंद्व
समूहों का नाश कीजिए। हे पृथ्वी का पालन करने वाले राजन्! दीन जन की ओर भी दृष्टि
डालिए
॥दोहा॥
बार-बार वर मागउं हरषि देहु
श्रीरंग
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सत्संग
मैं आपसे बार-बार यही वरदान
मांगता हूं कि मुझे आपके चरणकमलों की अचल भक्ति और आपके भक्तों का सत्संग सदा
प्राप्त हो। हे लक्ष्मीपते! हर्षित होकर मुझे यही दीजिए
बरनि उमापति राम गुन
हरषि गए कैलास
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए
सब बिधि सुखप्रद वास
सियावर राम चन्द्र की जय………………………..